बंगाल का पाल राजवंश —ऐतिहासिक सिंहावलोकन... ✍
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सभी पाल नरेश बौद्ध मतानुयायी थे. पाल के वंश के संस्थापक गोपाल ने नालन्दा में एक बुद्ध विहार का निर्माण करवाया था.
धर्मपाल —गोपाल के पुत्र धर्मपाल एक उत्साही बौद्ध थे. उनके लेखों में उन्हें "परमसौगत" कहा गया है. उसने विक्रमशिला तथा सोमपुरी (पहाड़पुर) में प्रसिद्ध बुद्ध विहारों की स्थापना की. उसकी राजसभा में प्रसिद्ध बौद्ध लेखक हरिभद्र निवास करते थे. तारानाथ के अनुसार उसने 50 धार्मिक विद्यालयों की स्थापना करवायी थी.
देवपाल —अपने पिता की भांति देवपाल भी बौद्ध मतानुयायी थे. तारानाथ उसे बुद्ध धर्म की पुनः स्थापना करने वाले कहते हैं. उसने बुद्ध विहारों के निर्माण में योगदान दिया. उसने ओदन्तपुरी (बिहार) के प्रसिद्घ बौद्ध मठ का निर्माण करवाया था. उसके सीमावर्ती क्षेत्र से उसके समय के अनेक लेख प्राप्त होते हैं जो उसके नैष्ठिक बौद्ध होने का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं.
महीपाल —जब पाल साम्राज्य लगभग समाप्त -प्राय होने वाला था कि इस वंश की गद्दी पर महीपाल प्रथम जैसा एक शक्तिशाली शासक आसीन हुआ. महीपाल ने 1034 ई. तक शासन किया. उसने अनेक मठ तथा बुद्ध विहार बनवाये थे. उसके शासनकाल में बौद्ध धर्म को पुनः प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त हो गया.
पाल नरेश बौद्ध मतानुयायी थे तथा उन लोगों ने "बुद्ध धर्म को राजकीय प्रश्रय" दिया जबकि उसका भारत से पतन हो रहा था. उन्होंने बिहार व बंगाल में अनेक चैत्य, बुद्ध विहार एवं प्रतिमाएँ बनवायी. विक्रमशिला बौद्ध विश्वविद्यालय एक ख्याति प्राप्त अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय बन गया. इसकी स्थापना धर्मपाल ने की थी. यहाँ अनेक बुद्ध मन्दिर तथा विहार थे. 12 वीं शताब्दी में यहाँ लगभग 3 हजार विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते थे.
उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट पता चलता है कि पाल नरेश बुद्ध मतानुयायी थे. उन्होंने बुद्ध धर्म को राजकीय प्रश्रय दिया था. बौद्ध विहारों, प्रतिमाओं का प्रचुरता से निर्माण करवाया था और बौद्ध विश्वविद्यालयों का निर्माण व उन्हें सुचारु रूप से संचालित करने हेतु धम्म दान देते रहते थे.
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सभी पाल नरेश बौद्ध मतानुयायी थे. पाल के वंश के संस्थापक गोपाल ने नालन्दा में एक बुद्ध विहार का निर्माण करवाया था.
धर्मपाल —गोपाल के पुत्र धर्मपाल एक उत्साही बौद्ध थे. उनके लेखों में उन्हें "परमसौगत" कहा गया है. उसने विक्रमशिला तथा सोमपुरी (पहाड़पुर) में प्रसिद्ध बुद्ध विहारों की स्थापना की. उसकी राजसभा में प्रसिद्ध बौद्ध लेखक हरिभद्र निवास करते थे. तारानाथ के अनुसार उसने 50 धार्मिक विद्यालयों की स्थापना करवायी थी.
देवपाल —अपने पिता की भांति देवपाल भी बौद्ध मतानुयायी थे. तारानाथ उसे बुद्ध धर्म की पुनः स्थापना करने वाले कहते हैं. उसने बुद्ध विहारों के निर्माण में योगदान दिया. उसने ओदन्तपुरी (बिहार) के प्रसिद्घ बौद्ध मठ का निर्माण करवाया था. उसके सीमावर्ती क्षेत्र से उसके समय के अनेक लेख प्राप्त होते हैं जो उसके नैष्ठिक बौद्ध होने का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं.
महीपाल —जब पाल साम्राज्य लगभग समाप्त -प्राय होने वाला था कि इस वंश की गद्दी पर महीपाल प्रथम जैसा एक शक्तिशाली शासक आसीन हुआ. महीपाल ने 1034 ई. तक शासन किया. उसने अनेक मठ तथा बुद्ध विहार बनवाये थे. उसके शासनकाल में बौद्ध धर्म को पुनः प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त हो गया.
पाल नरेश बौद्ध मतानुयायी थे तथा उन लोगों ने "बुद्ध धर्म को राजकीय प्रश्रय" दिया जबकि उसका भारत से पतन हो रहा था. उन्होंने बिहार व बंगाल में अनेक चैत्य, बुद्ध विहार एवं प्रतिमाएँ बनवायी. विक्रमशिला बौद्ध विश्वविद्यालय एक ख्याति प्राप्त अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय बन गया. इसकी स्थापना धर्मपाल ने की थी. यहाँ अनेक बुद्ध मन्दिर तथा विहार थे. 12 वीं शताब्दी में यहाँ लगभग 3 हजार विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते थे.
उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट पता चलता है कि पाल नरेश बुद्ध मतानुयायी थे. उन्होंने बुद्ध धर्म को राजकीय प्रश्रय दिया था. बौद्ध विहारों, प्रतिमाओं का प्रचुरता से निर्माण करवाया था और बौद्ध विश्वविद्यालयों का निर्माण व उन्हें सुचारु रूप से संचालित करने हेतु धम्म दान देते रहते थे.
@ चित्रप्रभा त्रिसरण
SABM -INDIA
चलो धम्म की ओर -चलो संविधान की ओर
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